Rupesh Kumar Teoth
मूल नाम : रूपेश कुमार झा
पिता : श्री नवकांत झा
पितामह : स्व हरेकृष्ण झा
साहित्यिक नाम : रूपेश कुमार झा 'त्योंथ' (मैथिली कविता) ओ नवकृष्ण ऐहिक
(आलेख/व्यंग्य)
साहित्यिक प्रकाशन : मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिका मे दर्जनो कविता ओ
मैथिली दैनिक मिथिला समाद मे 'खुरचन भाइक कछ्मच्छी' स्तम्भ केर अंतर्गत
तीन सय सं बेसी व्यंग्य लेखन-प्रकाशन
शिक्षा : स्नातक (कंप्यूटर अप्लिकेशन)
कार्यरत : वर्त्तमान मे कोलकाताक एक हिंदी दैनिक (झलक) मे संपादन मंडल मे कार्यरत, ओ झलक मिथिला :मैथिलीक हलचल-मिथिलाक हालचाल (मैथिली साप्ताहिक) केर संपादन कार्य
स्थायी पता: ग्राम+पत्रालय : त्योंथागढ़ , भाया : खिरहर, जिला: मधुबनी (मिथिला)
संपर्क: मोबाइल: +91-9239415921 , इ-मेल : [email protected]
पिता : श्री नवकांत झा
पितामह : स्व हरेकृष्ण झा
साहित्यिक नाम : रूपेश कुमार झा 'त्योंथ' (मैथिली कविता) ओ नवकृष्ण ऐहिक
(आलेख/व्यंग्य)
साहित्यिक प्रकाशन : मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिका मे दर्जनो कविता ओ
मैथिली दैनिक मिथिला समाद मे 'खुरचन भाइक कछ्मच्छी' स्तम्भ केर अंतर्गत
तीन सय सं बेसी व्यंग्य लेखन-प्रकाशन
शिक्षा : स्नातक (कंप्यूटर अप्लिकेशन)
कार्यरत : वर्त्तमान मे कोलकाताक एक हिंदी दैनिक (झलक) मे संपादन मंडल मे कार्यरत, ओ झलक मिथिला :मैथिलीक हलचल-मिथिलाक हालचाल (मैथिली साप्ताहिक) केर संपादन कार्य
स्थायी पता: ग्राम+पत्रालय : त्योंथागढ़ , भाया : खिरहर, जिला: मधुबनी (मिथिला)
संपर्क: मोबाइल: +91-9239415921 , इ-मेल : [email protected]
खायब की ?खायब की ? खायब क़ी ?
नहि फुराइए लए कतय नुकाउ, संकट मे पड़ल निज जान ओ जी। डार तोडि आब प्राण मंगैयए, धय ठोंठ ठिठियाए महगी। आध पेट खा दिन-राति, ढ़ेकरै छी भरि लोटा जल पी। सुखा गेल बिनु बतिये, चार परक सजमनि लत्ती। हार कांपय जाइत हाट हमर, साधंश नहि, लेब तरकारी। महगीक ई विकट धाह, ढनढना देलक भोजनक थारी। लोक करत की, अछि कानि रहल, मुदा सरकार नचैछ बजा पिपही। परिवार बनल हो जेना पहाड़, टेकब कोना हम बनि टिटही। चिंतित छी जे कोना जुरत, पोथीक टाका, सेनूर, टिकुली। एहना मे की छोड़ा सकब? सोनरा सं हुनक हार, हंसुली। महगी बना देलक अछि हमरा, अयोग्य, निरीह ओ अपराधी। भेल अवस्था एहन हमर, अपने सं अपना कें दुत्कारी। घर अबिते ताकय हमरा दिस, बैसल विवश बेटा-बहु-धी। लागय जेना ओ पूछि रहल हो, |
क्षमा प्रार्थी छीकतय गेल आ जा रहलय,
हमर ओ अप्पन छवि। केहन बेदाग छल स्वर्णिम, साक्ष्य छथि उगल रवि। कतय गेल उर्वरता हमर माटिक, जे उगबैत छल बिनु कांट गुलाब। आश्वस्त छलहुं छवि रहत नीक, मुदा पूर भेल ने हमर खोआब। यैह माटि उगओने छल कहियो, वीर सपूत शिवाजी कें । यैह माटि उगओने छल कहियो, सावरकर, लोकमान्य तिलक कें । एकरे उपज छल ओ संत, जकरा स्वार्थ छलैक ने एको पाई। जनसेवा कें सर्वोपरि बुझलक, ओ बनल देव शिरडी साईं। कयने अछि हमरा अति आकच्छ, उत्पात मचा 'दू गोट कपूत'। नहि रहय देलक ई छवि स्वच्छ, धयने छैक एकरा स्वार्थक भूत। कयलक ई दुनू घोर कलंकित, स्वर्णिम इतिहास मराठा कें । सेकि रहलय ई बिनु आंच, अप्पन स्वार्थ पराठा कें। जं घाव रहैछ कोनो अंग मे, दुखित होइछ समूचा शरीर। एहन नालायकक बात पर, होउ ने अहाँ सभ अधीर। किन्नहु नहि होयत भला जखन, प्रान्तक हित देखि छोडि राष्ट्र। हो खाहे ओ असाम, बंगाल, वा हम अपने महाराष्ट्र। डीरिया रहलय जे ई दुनू कुपात्र, एहन ने हम स्वार्थी छी। कष्ट पहुंचल अपने सभ कें, ताहि हेतु हम क्षमा प्रार्थी छी। |
बदलत कोना?लोक मरैत रहत सदैव, आतंकवादीक गोली सँ।
जनता ठकाइत रहत सदैव, क्रूर राजनेताक बोली सँ। गरीब तंग रहत सदैव, पेटक किलकिलाइत भूख सँ। स्त्री दबायल रहत सदैव, पुरुखक चमचमाइत बूट सँ। सवर्ण डेराइत रहत सदैव, डोमक थूक सँ। मिथिला दहाइत रहत सदैव, बेंगक मूत सँ। बेटा बिकाइत रहत सदैव, मोटगर दहेज़ सँ। बेटी जरइत रहत सदैव, आगिक लपेट सँ। राशन घटल रहत सदैव, नहि होयत किछु भाषण सँ। लोकतंत्र मे मारामारी रहत सदैव, हटय चाहत ने क्यो सिंघासन सँ। देश सहमल रहत सदैव, कलियुगी रावण ओ कंस सँ। किछु लोक चाहैत रहत सदैव, बचय समाज विध्वंस सँ। अपने मे सब लड़ैत रहत सदैव, नहि होयत किछु झगरला सँ। ई थेथर समाज एहने रहत सदैव, नहि बदलत बात छकरला सँ। |
चाही हमरा मिथिलाई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला
मानकरै छी हिन्द देशकेर,हम्मर झंडा तिरंगा एकर नीचां चाही हमरा, एकटा अप्पन मिथिला ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला पुरा कालमे मिथिलामे छल,ज्ञानी-प्राणी बड-बड मुदा हाल आब देखू एकर भऽ गेल केहन जर्जर भेल उपेक्षा हमरसभक,कयलहुँ बड्डडिन मर-मर आब ने खायब टपला, चाही हमरा मिथिला माटि एतयकेर उपजाऊ अछि,नहि बूझूयौ उस्सर प्रतिभा सभ अछि भरल-पडल, नहि बूझू अहाँ भूधड सुतल छलथि यौ मैथिल जन सभ, आब सभ क्यो जगला ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला सुख-सुविधा केर अता-पता नहि, सउँसे थिक अन्हारे बाढि प्रभावे फसल बहैए, भऽ जाइछ लोक बिनु चारे कथा सडक केर कहल जाय ने, लगै जेना हो डबरा आब ने रहब फुसला, चाही हमरा मिथिला भेटल आजादी सगर देश मे, मिथिला जेना परतंत्रे कोनो लाभ लेल हमरा सभ, तकै छी पाटलिपुत्रे मुदा भेटै अछि किछुओ नहि यौ, भऽ जाइछ ओम्हरे घपला ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला शुरुए सँ कतियाएल कनै छी, दुनू हाथ धऽ माथ करै मिथिला राज अलग, नहि चलतौ कोनो लाथ मात्र 'त्योंथ' नहि एकहि संग यौ, सभ मैथिल जन बजला ई ने पूछू कथिलए, चाही हमरा मिथिला |
ब्रह्माक चिंताब्रह्मा कयलनि अनुपम श्रृष्टि,
श्रम सं ओ रचलनि इंसान। बुद्धि संग द' बल-विवेक, फुंकलनि ओहि मे ओ स्वर्णिम जान। तइयो हुनका नहि भेटलनि तृप्ति, द' देलनि मनुज कें असीमित ज्ञान। भेजलनि जखन धरती पर ओकरा, छल ने जीव कोनो ओहि समान। सूझ -बूझ कें बले मानव, कयलक तीव्र गतिये उत्थान। पेट पोसबाक जोगर कय, भेल ओ भौतिक सुख हेतु हरान। विकासक सीढ़ी चढैत अपन, सूझे अनलक उपयोगी विज्ञानं। आह विज्ञानं जे ओ छुलक, दूर मेघक चमकैत चान। वाह मनुक्ख ! तू करबए किए ने, अपन बुधि पर कने गुमान। एही क्रमे बनल सेहो ओ, पराक्रमी अस्त्र-शस्त्रवान। उधेशय लागल आब मनुक्ख, देवक बगिया कें बनि हैवान। हाहाकार अछि पसरल सगरो, दुष्ट ने बुझय अप्पन-आन। मारय-काटय एक दोसर कें, बैसल कुहरय लोक लहूलुहान। त्राहि-त्राहि केर सुनि टाहि, टूटलनि ब्रह्मा केर योग-ध्यान। देखि अचंभित भेल छथि, धरती परक सांझ-विहान। चिंता मे छथि लागल ब्रह्मा, भेटत कोना मनुक्ख सं त्राण। |
जय हिन्द! जय जय मिथिला!!राष्ट्र हमर भारत थिक
जे विश्वगुरुक महिमा सँ मंडित तकर कान्ह पर थिक सुशोभित हमर जन्मभूमि मिथिला जय हिन्द! जय जय मिथिला!! अनेकता मे एकता थिक देशक प्राण यैह तऽ थिक एक्कर पहिचान ओहि अनेक मे सँ एक हमर जन्मभूमि मिथिला जय हिन्द! जय जय मिथिला!! हिन्दक मही पर थिक विद्यमान संस्कृति अनेक बनि चान मिथिलाक संस्कृति सेहो एक अविरल दीप्तिमान विशेष शिला जय हिन्द! जय जय मिथिला!! माटि सोन ओ देश मणि कन्हुआ कऽ ताकै एम्हर कनी आँखि देबौ दुनू फोड़ि आ दम लेबौ तोरा माटि मिला जय हिन्द! जय जय मिथिला!! माटिक सेवक छी हम देशभक्त एकरा लेल बहा सकै छी रक्त माटि लेल पसीनाक ठोप-ठोप सुखा सकब ने कथिला? जय हिन्द! जय जय मिथिला!! पहिने हित देशक फेर प्रदेशक अगुआ सभ ले तोँ ई सबक नहि तऽ एहि देशक जनता चटिएतौ तोरा झोट्टा हिला जय हिन्द! जय जय मिथिला!! |
कॉलेज देखलक बौआअपने छी हम मैट्रिक
गरीबीक चक्की मे पिसा क' फेल भेल हमर बैटरी चिंता सं हम पेरायल छलहुं मुदा तइयो भरोस भेल कॉलेज देखलक बौआ टिभी केबल छल कटल घरक राशन छल घटल बुझि सकै छी, की कहू ? अभावो कें देखि ओ फैशनक हिसाबे कीनलक जींस झमकौआ किछु दिन कॉलेज क' बढौलक ओ हिप्पी अप्पन उमेर देखि सधलहुं हम चुप्पी खा गेल ओ हमरो तहिये जहिया ओकर मोंछ कटलकै नौआ एकदिन छ्गुन्ता लागल ओकर जींसक पतलून सं गुटखा बहरायल बुझय मे आबि गेल करैत होयत ई कत्ते नशाक सेवन नुकौआ घींच-घाचि क' थर्ड ईयर मे अछि हे उच्चैठक महरानी, अहीं पर लगबियौ भरोस एक्को रत्ती नहि अछि मैया अहीं कें गोहरबै छी जं भेल ई पास त' चढायब छागर हम जौआ खर्चक पहाड़ सं देलक ई नमरा बेचीं घरारी आ की बेचीं हम डबरा कर्जो नहि भेटै छै , कहियौ हम ककरा ई त' कुपात्र भेल, ठेस लागल हमरा एकरा सं किछु छुटल नहि छै कए खेप ई चिखने होयत पौआ फैशन सं लैस भ' जेबी मे किछु कैश ल' चलैए अनबिसेख एना हो शाहरुख़ , सलमान जेना आब ने उजियाएत ई हमर मोन भेल कौआ आब हम नियारल बियाह करा दी एकर घट्टक अबैए ढेर -ढाकी कनिया हम चिक्कन ताकी दिन-दुनिया ठीक करबा वास्ते दहेज़ लेबै मोटकौआ |
मनभरनि डूबि मरलैएमनभरनि डूबि मरलैए
दू दिन पर अयलहुं मधुबनी सं गाम त' देखै छी- आइ गाम लगैछ सुन्न-मसान नहि क्यो अछि कतौ भम्म पडैछ सभक दलान कखनो काल क' सुनय मे अबैछ कुकुरक कटाउझ छोट हड्डी टुकडी लेल सभ अछि हरान दाइ-माइक सेहो पता नहि लगैछ गाम आइ मरघट समान कखनो काल क' सुनय मे अबैछ कनिया-मनियाक फुसफुसायब कोनो विषय पर कनफुसकी सीमा तोडि भेल हल्ला सुनि हल्ला भेल झ'ड़ कान कतय गेलाह पुरूष ओ दाइ-माइ , नेना-भुटका कोना बुझब जे भेलैछ की ? हम भेलहुँ फिरेसान नजरि पडिते एकटा नेना पर पुछलियै की भेलैए ? मनभरनि डूबि मरलैए कहलक ओ अबोध जान सुनीते पड़ऐलहुं पोखरि दिस पहुँचलहुं ओतहि, जतय लोकक लागल छल करमान देखि लागल हमरा ठक-बक भीड़क बीचो-बीच राखल मनभरनिक देह बेजान मायक रूदन ओ तड़पब देखल नहि गेल हमरा मुदा बाप भेल छल कठोर लगै छल जेना मरल हो क्यो आन किएक ने लगै ? भेल छलैक बेटी गराक घेघ सर्वगुण संपन्न रहितो नहि होइत छलैक बियाह द' सकै छल ने ओ मोटगर दहेज़ नहि छलैक ओकरा नगदी-नरायन द्वारे-द्वारे क'ल जोडैत थाकि गेल छल ओ कएक थम त' सहय पडैक अपमान बेटी कें देखल नहि गेलैक बापक फिरेसानी गेल दुनिया सं निश्चिंत क' बाप कें अपने हाथे तेजि प्राण |
आयल फेरो समय लगनकदलान पर किछु लोक छथि बैसल,
ककरो मोन खनहन, ककरो मुंह लटकल, सभ करैत छथि गप्प-सरक्का, कखनो काल कऽ हँसी-ठट्ठा, ताहि बीच कखनो चलैछ चटक-मटक, आयल फेरो समय लगनक। क्यो दऽ रहल छथि मोंछ पर ताव, तऽ किनको हृदय मे छनि पैघ घाव, बेटाक बाप करैछ अपन बेटाक बड़ाइ, ओ लेबे करता खूब ऐंठि कऽ पाइ, नहि चलैछ बेटी बापक सकपक, आयल फेरो समय लगनक। दरवज्जे पर सँ होइछ कथा, केऽ आब जायत सौराठ सभा, ओतय कखनो लागि जेतै घटा, तऽ फेर कखनो हेतै खूब नफा, पेटो तऽ चलै छै, ओतय बियाह होइ छलै चटपट, आयल फेरो समय लगनक। खूब फरैछ एखन झूठक खेती, भाँड़ मे जाओ दोसरक बेटी, बुद्धि खटाउ भेटत कमीशन, एक्के बेर तऽ चाही परमीशन, मनुक्ख बिकाइछ हाथे दलालक, आयल फेरो समय लगनक। ककरो कुहरेने क्यो भऽ जाइछ ने सुखी, ठीके कहै छी हम, तकै छी की ? होइछ थोड़हि ने किछु दहेजक टका सँ, खेत नहि पनियाइछ बैसाखक घटा सँ, मेटाऊ समाज सँ नाओ एहि कुकृत्यक, आयल फेरो समय लगनक दहेज लेब थिक घोर पाप, समाज केर ई कारी छाप, मेटाऊ आदर्शक मेटौना सँ, देखू आयल घट्टक बेतौना सँ, बेर अछि एखने दहेज दमनक, आयल फेरो समय लगनक। |